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पदार्थ विज्ञान
और वह इन्द्रिय-भोगोको भोगनेसे उत्पन्न होता है, परन्तु भीतरी सुख शान्तिस्प है । सुखका विपक्षी दुःख है । वह भी दो प्रकारका है - बाहरी तथा भीतरी । बाहरी दुःख तो शरीरको पीड़ा आदि रूप है और भीतरी दुःख, चिन्ता व व्याकुलता रूप है। बाहरी सुख-दुख तो ज्ञानके द्वारा जाने जाते हैं, और भीतरी सुख-दुख दर्शन के द्वारा देखे जाते हैं या महसूस किये जाते है |
यद्यपि जीवमे सुख नामका गुण कहा गया है परन्तु इसका यह अर्थ नही कि जीवमे सुख ही नामका गुण हो दुख न हो, क्योकि ये दोनो ही प्रत्यक्ष देखनेमे आते हैं। फिर भी गुणका नाम सुख रखा गया है दुख नही, और न ही दुख नामका कोई पृथक् गुण बताया गया है । इसका कोई विशेष प्रयोजन है । वह यह कि दुख जीवको उसी समय तक रहता है जिस समय तक कि वह शरीर व अन्त करणके साथ बँधा रहता है । परन्तु उनके वन्धनसे छूटनेपर उसे सुख ही होता है, दुख नही । यहाँ क्योकि चेतन या जीवके गुण बताये जा रहे हैं इसलिए उन्ही गुणोका विचार करना युक्त है जो कि शरीर व अन्त करणसे पृथक् हो जानेपर जीवमे पाये जाते हैं । इसलिए जीवमें सुख नामका ही गुण है दुख नामका नही और वह सुख भी भोगो सम्बन्धी न समझकर शान्ति सम्बन्धी ही समझना ।
६. वीर्य
वीर्यका अर्थ शक्ति है । प्रत्येक पदार्थमे कोई न कोई शक्ति अवश्य होती है । शक्ति नाम भार सहन करने तथा टिकनेका है । कोई भी पदार्थ जितनी देर तक टिका रह सके, बिगड़े या गले नही, कमज़ोर नही हो, उतनी ही उसकी शक्ति है । जैसे कि स्तम्भकी शक्ति इतनी है कि इतनी भारी दीवारको अपने ऊपर धारण कर लेनेपर भी दबे नहीं, टूटे नही और सैकड़ो वर्षों तक