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पदार्थ विज्ञान
तथा जिसकी सेवाके लिए दो नौकर हैं, स्वर्ग-सुखका अनुभव कर रहा है । जिसपर ५० मन भार लदा है, वेचारेसे एक कदम भी नही पटता, जीभ बाहरको लटक रही है, मुंहसे झाग पड़ रहे हैं, हाँफते-हांफते कलेजा फटा जाता है, गरमीके दिन होनेके कारण प्यासके मारे सारे शरीरमे अग्नि व्याप रही है, गरदन घायल हो गयी है, दोनो तरफ लटक रही है, फिर भी ऊपरसे डण्डोंके कडे आघात सह रहा है, जिससे उसकी चमडी भी कहीकहींसे उघड गयी है, डण्डेके आगे लगी हुई कील उसके अण्ड-कोषमे चुभायी जा रही है। ऐसा भैंसा नरककी वेदनाका अनुभव कर रहा है । अथवा वह गधा नरककी वेदनाका अनुभव कर रहा है, जिसकी कमरपर बहुत बड़ा घाव है, और कौवे बैठ-बैठकर उसे अपनी तीखी चोचसे ठोग रहे हैं। अथवा वह बढी गाय नरकका दुख भोग रही है, जिसने दूध देना बन्द कर दिया है, जिसे स्वामीने घरसे बाहर निकाल दिया है, जो भूखो. प्यासी गलियोमे घूमती है, कही कुछ भी खानेको नहीं मिलता, जीभसे सूखी पृथिवीको चाटकर सन्तोष कर लेती है, सर्दीकी रातोमे खुले आकाशके नीचे ही बैठकर ऊपरसे पडनेवाले गोलोके कडे आघात सह रही है, और सर्दीमे ठिठुर-ठिठुरकर प्राण छोड रही है। अथवा वे अनाथ पक्षीगण नरककी वेदना सहन करते हैं, जो कि सर्दीकी तुषार बरसाती रातोमे वृक्षोपर बैठे उसके पत्तोमे छिपकर कहरे व ओले आदिसे अपनी रक्षा करनेका व्यर्थ प्रयत्न कर रहे है।
इसी प्रकार मनुष्य गतिमे भी बडे-बडे राजे महाराजे तथा वडे बडे सेठ साहूकार जिनके पास कि भोगके सम्पूर्ण साधन उपस्थित हैं, जिनके चारो ओर सेवक लोग रहते हैं, जिनके पास सुन्दर सुन्दर स्त्रीय हैं, स्वर्गका सुख भोग रहे हैं। और वह बेचारा