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पार्थ यिभान ___ इस प्रकार मत् व अमत्की दो प्रकारमे व्याम्या की जाती है। जो जाननेमे आये सो मत् जो जाननेमे न आये सो अगत् । मष्टिगे पदार्थ, उसके गुण व पर्याय नभी मत हैं और गधी भीग आदि काल्पनिक पदार्थ असत् । दूसरे प्रकारसे 'जो टिन गो गत् बोर झलक मात्र दिखाकर विलुप्त हो जाये अर्थात् न टिके नो अमत्', इस दृष्टिसे नित्य पदार्थ तो सत् है और पर्याय मात्र अमत् ।
अव यह प्रश्न होता है कि वह मूल पदार्थ क्या है जो कि नित्य टिकता हो और जिसे हम सत् कह सकें? जितने कुछ भी दृष्टान्त अब तक बताये गये हैं तथा जितने कुछ भी पदार्थ लोकमे दिग्बाई देते है वे सब नित्य नही हैं. क्योकि ऐसा सभी जानते है । आम्रफल सदा आम्रफल नही रहता, वृक्षपर पैदा होता है और गल-सडकर समाप्त हो जाता है। मनुष्य सर्वदा मनुष्य नही रहता, पैदा होता है और मृत्युके मुग्वमे जाकर समाप्त हो जाता है । स्वर्ण, सदा स्वर्ण नही रहता, खानमे पैदा होता हैं ज़ेवर आदिके रूपसे शरीरको सजाकर धीरे धीरे घिसता हुआ मिट्टीमे मिलकर समाप्त हो जाता है । अत वह सत् पदार्थ क्या है जो सदा स्थायी हो, सदा नित्य हो, सदा टिकता हो। ये सब दृष्ट पदार्थ असत् है । असत् पदार्थमे उलझकर उसके चक्करमे पडना अपनेको धोखा देना है, इसलिए आओ उस नित्य सत् पदार्थकी खोज करें। १३ सत् बनाया नहीं जाता
जो सत् होता है वह स्वय होता ही है, बनाया नही जाता। जो होता है वह बनाया नहीं जाता, जो नही होता वही बनाया जाता है । जो स्वय होता है उसका विनाश भी नही हो सकता, जो नही होता पर नया बनाया जाता है उसका विनाश भो हो जाता है। जैसे परमाणु सदासे है वह नया नहीं बनाया जाता