________________
६
.
पदार्थ विज्ञान
प्रेरणा किया करती है । इस आवाज़ को सस्कार कहते हैं। तथा दूसरी आवाज उसे अन्याय करनेसे रोका करती हैं। भले ही उस आवाजका तिरस्कार करके कोई अन्याय करे, झूठ बोले अथवा घूस ले परन्तु वह आवाज तो आती ही है जिससे सब परिचित है। उसे हो अन्तर्ध्वनि कहते है (इस विषयका विस्तार शान्ति पथ प्रदर्शन नामकी पुस्तकमे देखा जा सकता है)। जो अन्तर्वनि कि व्यक्तिको सदा न्याय तथा हितकी ओर झुकनेकी प्रेरणा दिया करती है, जो अन्तर्ध्वनि कि सदा संस्कारका विरोध करके व्यक्तिको उससे हटनेका उपदेश दिया करती है, और आगे जाकर जो अन्तध्वनि कि उसे बाहरमे शरीर तथा इन्द्रियोका, अन्दरमे बुद्धि हृदय वह मनकी समस्त चचल विचारणाओका, संकल्प-विकल्पोका, अथवा दुख-सुखके द्वन्द्वोका त्याग करके, निर्विचार निर्विकल्प तथा निर्द्वन्द्व होनेकी प्रेरणा किया करती है, वह अन्तर्ध्वनि न वृद्धिकी आवाज़ है और न मनकी। वास्तवमे वह अन्त करणके भी भीतर हृदयमे स्थित चेतनकी या आत्मस्वभावकी आवाज है। इसलिए कहा जा सकता है कि 'चेतन' अन्तःकरणसे भी परे है। अबतक अन्तःकरणको ही जो चेतन बताकर समझाया जा रहा है, वह केवल अभ्यासरहित स्थूल बुद्धिवाले प्राथमिक जनोको समझाने मात्रके लिए ही बताया गया है । वास्तवमे चेतन पदार्थ अन्त करणसे भी परे है।
उसको दर्शाना तथा बताना तो असम्भव ही हैं, फिर भी ऐसा समझ लीजिए कि जीवनमे-से यदि शरीर व इन्द्रियको निकालकर बाहर कर दें, बुद्धि व मनको भी निकाल दें, उनकी विचारणाओ, वेदनाओ व विकल्पोको भी निकाल दें, और सस्कारो को भी निकाल दें, तो क्या शेष रह जायेगा, यह विचारें ? इतना ही नही आगे जाकर इस अन्तर्ध्वनिको भी निकाल दें । अब जो कुछ