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३ पदार्थ विशेष
भी वास्तवमे रंग ही दीखते है, आकाशका आकार नही । इस प्रकार रगवाले आकारमे रगके साथ-साथ आकार सहज दिखाई दे जाता है। बिना रगवाला आकार कैसे देखा जा सकता है जबकि आँखका विपय केवल रंग ही है । ज्यो ही परमाणुओका वह स्थूल रंग समाप्त हुआ त्यो ही वहाँ कुछ भी दिखाई देना बन्द हो गया । हम पूछते है कि क्या अब वहाँ कुछ नही रहा ? आकाशका वह भाग तथा वे सब परमाणु तो वहाँ ही है, परन्तु दीखते नही । इसी कारण अमूर्तिक पदार्थों को अरूपी भी कहते हैं । अरूपका अर्थ है विना रगवाला, न कि बिना आकारवाला, क्योकि रूपका अर्थ रंग है आकार नही ।
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शरीरसे मुक्त होकर जब चेतन अकेला रह जाता है तब वह आँखसे दिखाई नही देता । ऐसे 'चेतन' मुक्त जीव या सिद्ध भगवान् कहलाते है | उनका आकार अमूर्तिक तथा अरूपी होता है, वह दिखाई नही दे सकता। इसी प्रकार आकाश तथा अन्य अजीव पदार्थो का आकार भी अमूर्तिक होनेके कारण आँखसे देखा नही
जा मकना ।
५ सक्रिय तथा श्रक्रिय
जीव तथा अजीव दोनो ही पदार्थोंमे सक्रिय और अक्रियके भेदसे भी भेद है । सक्रिय कहते हैं क्रिया करनेवालेको और अक्रियका अर्थ है क्रिया न करनेवाला । क्रियाका अर्थ है हिलना-डुलना, चलना-फिरना, सिकुडना फैलना आदि । अर्थात् प्रत्येक काम जिसमे पदार्थको किंचित् भी हिलना-डुलना पडे क्रिया कहलाता है । जीव तथा अजीव इन दोनो पदार्थों के अनेक अवान्तर भेद हैं । उनमे से कुछ भेद तो ऐसे है जो कि हिल-डुल सकते है और कुछ ऐसे हैं जो हिल-डुल नही सकते, सदा स्थिर रहते है । हिलने-डुलनेवाला पदार्थं क्रियावान् कहलाता है और स्थिर पदार्थ क्रियाहीन |