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पदार्थ विज्ञान
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देता है परन्तु वास्तवमे जो दिखाई देता है वह सत् नही है, वह उस पुद्गलको परिवर्तनशील अवस्थाएँ अथवा पर्यायें है । इसीलिए ज्ञानी जन इसको अनित्य, मिथ्या, माया तथा प्रपच कहते है । सभी जीवोके शरीर भी पुद्गलकी ही अवस्था - विशेष है इसलिए यह भी अनित्य है, मिथ्या है, माया है, प्रपच है ।
मूल पुद्गल पदार्थ (element) तो परमाणु है, जिससे कि ये सभी पदार्थ बने हैं। अनेको परमाणु भिन्न-भिन्न प्रकारसे मिलजुलकर इन पदार्थो का सृजन करते हैं। भले ही मिल-जुलकर उससे चित्र-विचित्र पदार्थ बन जायें, पर वह परमाणु स्वयं एक ही प्रकारका है । इसका विशेष कथन आगे किया जायेगा । वह इतना सूक्ष्म होता है कि आँखोसे तो क्या माइक्रोस्कोपसे भी दिखाई नही दे सकता । केवल उसके कार्यभूत इन दृष्ट पदार्थोंपर से उसकी सत्ताका अनुमान लगाया जा सकता है। मूर्तिक जड पदार्थों मे परमाणु हो सत् है । ये लोकमे अनन्तानन्त हैं । यद्यपि स्वयं इन्द्रियोसे दिखाई नही देता, परन्तु इससे बने हुए पदार्थ दिखाई देते हैं, इसलिए यह भी मूर्तिक है । अनेक परमाणुओके मिल जानेपर जो पदार्थ बनते हैं उन्हे 'स्कन्ध' कहते हैं । वे बडे-छोटे अनेक आकारो तथा अनेक स्वभावोको धारण करते हैं ।
परमाणु हो या स्कन्ध, है दोनो पुद्गल ही । इसमे मुख्य चार गुण है - स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण । ठण्डा गर्म, चिकना रूखा आदि स्पर्श कहलाते है । खट्टा-मीठा आदि रस कहलाते हैं । सुगन्धदुर्गंध गन्ध कहलाते हैं । लाल, पीला आदि रग कहलाते हैं । लोकके सभी पदार्थोंमे केवल ये पुद्गल स्कन्ध ही ऐसे है जो कि टूट सकें या जुड़ सकें और इसका कारण भी यही है कि यह मूल पदार्थ नही, सत् नही । सत् या मूल पदार्थको तोड़ा-फोड़ा नही जा सकता । वह अखण्ड होता है और वह परमाणु ही है ।