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२ पदार्थ सामान्य
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तथा जितने भागमे एक गुण व पर्याय रहती है उसी तथा उतने ही भागमे दूसरा गुण तथा दूसरी पर्याय रहती है, जैसे कि अग्नि नामक पदार्थमे जहाँ तथा जितने क्षेत्र मे उष्णता व्यापकर रहती है, वहाँ तथा उतने ही क्षेत्रमे प्रकाश भी व्यापकर रहता है । इस प्रकारके गुणोका समूह वह द्रव्य है, जो क्षेत्रवान् है । गुणका अपना कोई स्वतन्त्र क्षेत्र या आकार नही होता । जो द्रव्यका क्षेत्र या आकार है, वही गुण या पर्यायका क्षेत्र या आकार है ।
यह तो द्रव्य तथा गुणके क्षेत्र सम्बन्धी बात हुई । अब उसके अनित्य अश या पर्याय परसे भी कुछ सिद्धान्त निकालना चाहिए । पर्याय द्रव्य तथा गुणकी परिवर्तनशील अवस्थाओको कहते हैं जो कि नित्य द्रव्य तथा गुणोपर जलकी तरगोवत् प्रकट हो-होकर विलीन हुआ करती हैं। अब कोई एक पर्याय है अगले ही क्षण वह नही है, उसके स्थानपर कोई दूसरी ही है और तीसरे क्षणमे कोई तीसरी ही है, इस प्रकार बराबर बदलती रहती है । पर्याय क्योकि बदल जाती है इसलिए किसी भी निश्चित पर्यायको जाननेके लिए हमे यह तो कहना ही पडेगा कि आजकी पर्याय या कलकी पर्याय, अबकी पर्याय या तबकी पर्याय, एक वर्ष पहलेकी पर्याय या एक वर्ष बादकी पर्याय । यदि इस प्रकार अब तव आज-कल आदिका प्रयोग न करें तो किसीको क्या बतायें कि पर्यायको बतानेके या जानने के लिए अवश्य ही हमे समयकी अपेक्षा लेनी पडती है । समय कहो या काल एक ही अर्थ है । इसलिए द्रव्यमे पायी जानेवाली इसकी परिवर्तनशील पर्याय ही इस द्रव्यका 'स्व-काल' कहा जाता है ।
द्रव्यके अनेको गुण उसके वे 'स्व-भाव' है जिनपर से कि हम विभिन्न जातीय द्रव्योकी पृथक्-पृथक् पहचान करते है । चेतनभाववाला या ज्ञानगुणवाला जो है वह जीवद्रव्य है और स्पगं आदि