Book Title: Nyayavatara
Author(s): Manikyasagarsuri
Publisher: Agmoddharak Granthmala

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Page 16
________________ गाथा (१४) विषय: स्याद्वादिनां जैनानामाभिमत्येन तु कार्यस्य वैस्रसि कादि त्रैविध्यात विश्वस्य नानारूपत्वसङ्गतिः समीचीनतरैवेति निरूपणम् । ईश्वरस्य जगत्कर्तृत्वे हि यूथान्तरीयोपहास - प्रधानोक्तिसंग्रहः तद्द्द्वारा चाज्ञानमूलत्वं जगत्कतृत्वस्येति प्रतिपादनम् । विश्वेश्वरस्य जगद्विधातृत्वे प्रकीर्णकानां हेत्वन्तः राणां निरासः । १५० थी १५३ जगत्कर्तृत्ववादापोद्वारा विश्वस्यानादित्वमनूचानवर्याः संसूच्य प्रमाणादिव्यवस्थामध्यादिनिधनरहितां निर्देशितवन्तः । पृष्ठम् १४७/१४८ 6 १४६ / १५० १५३ १५४ अन्त्यमङ्गलनिर्देशः । न्यायावतारकतुः नामनिर्देशेन वस्त्रापह्न तिद्वारा मुनिमार्गमपलपमानानां दिगम्बराणां जैनाभासतां केवलिभुक्तिं च संसाध्याव्यक्तध्वनिरूपेण तीर्थकृतां देशनेति मुग्धजनोपहसनीयत्वं प्रतिपाद्य ग्रन्थकतु: सिद्धसेनापराह्नमाचार्य पदलभ्यां सूचितत्रन्तः । १५५/१५६ प्रथकतु' : गरिमास्पदमहिमासूचकप्रमाणोपन्यासः । १५६/१५७ प्रन्थकतुः नामोच्चारण मदोषायेति सयुक्तिकम् निरूपणम् । १५७ दीपिकाकतु : प्रशस्तिः । १५७ थी १५६

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