Book Title: Nirayavalika Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 8
________________ [7] रिद्धि, द्युति आदि प्राप्त करने का कारण पूछने पर भगवान् ने उनके पूर्व भव का कथन किया। इन चार अध्ययनों में प्रथम, द्वितीय एवं चतुर्थ अध्ययन में वर्णित देवों की संयमव्रत की आराधना एवं तृतीय अध्ययन में वर्णित देव ने देशविरति श्रावकव्रत की आराधना की, किन्तु कालान्तर में उनका सम्यक् प्रकार से पालन नहीं करने, उसकी विराधना करने तथा अपने दोषों की आलोचना नहीं करने के कारण इन ज्योतिषी विमानों में देव रूप में उत्पन्न हुए। शेष छह अध्ययनों में वर्णित देव भी भगवान् के दर्शनार्थ पधारे उन्होंने बत्तीस प्रकार की नाट्य विधियों का प्रदर्शन किया, गणधर प्रभु गौतम के पूछने पर भगवान् ने उनके पूर्व भव का कथन किया। सभी छहों देवों ने पूर्व भव में संयम की आराधना की और अन्तिम समय संलेखना संथारा करके प्रथम देवलोक में उत्कृष्ट दो सागर की स्थिति में उत्पन्न हुए। यहाँ की स्थिति पूर्ण होने पर ये सभी महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होंगे तथा संयम तप की आराधना करके मोक्ष को प्राप्त करेंगे। पुष्पचूलिका - चतुर्थ उपांग पुष्पचूलिका है। इसके भी दस अध्ययन हैं - १. श्री देवी २. ह्री देवी ३. धृतिदेवी ४. कीर्तिदेवी ५. बुद्धि देवी ६. लक्ष्मी देवी ७. इला देवी ८. सुरादेवी ६. रस देवी १०. गंध देवी। इन दसों अध्ययन में वर्णित देवियाँ सौधर्मकल्प में अपने नाम के अनुरूप वाले विमान में उत्पन्न हुई। सभी ने राजगृह में समवसृत भगवान् महावीर को देखा, भक्ति वश वे वहाँ आईं यावत् नृत्य विधि को प्रदर्शित कर वापिस लौट गईं। गणधर प्रभु गौतम के पूछने पर भगवान् ने उनेक पूर्व भव का कथन किया। सभी दसों देवियों ने भगवान् पार्श्वनाथ प्रभु के शासन में पुष्पचूलिका आर्या के पास दीक्षा अंगीकार की। कालान्तर में सभी शरीर बकुशिका हो गई। महासती पुष्पचूलिका आर्या के समझाने पर भी वे नहीं मानी बल्कि उपाश्रय से निकल कर निरंकुश बिना रोकटोक के स्वच्छन्दमति होकर बारबार हाथ-पैर धोने, शरीर की विभूषा करने लगी। अपने दोषों की आलोचना न करने के कारण संयम विराधक बन कर प्रथम देवलोक में देवी रूप में उत्पन्न हुई, वहाँ एक पल्योपम की आयुष्य पूर्ण करके महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेगी। संयम तप की शुद्ध आराधना करके सिद्धि गति को प्राप्त करेगी। . ५. वहिदसाओ - पांचवां उपांग वण्हिदसाओ है। इसके बारह अध्ययन हैं - १. निषधकुमार २. मातली कुमार ३. वहकुमार ४. वहेकुमार ५. प्रगतिकुमार ६. ज्योतिकुमार ७. दशरथकुमार ८. दृढरथकुमार ६. महाधनुकुमार १०. सप्तलधुकुमार ११. दशधनुकुमार १२. शतधनुकुमार। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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