Book Title: Nirayavalika Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 6
________________ [5] शान्त करने के लिए तेरे पिताजी अंगुली को मुंह में रखकर चूसते, जिससे तेरी वेदना कम होती। ऐसे परम उपकारी पिताजी को बंदी बनाकर कारागृह में डालते तूझे विचार नहीं हुआ। माता के मुख से उक्त बात सुनने पर कोणिक के हृदय में पिता के प्रति प्रेम उमड़ा, वह अपने हाथ में कुल्हाड़ा लेकर पिताजी की बेड़ियाँ काटने के लिए कारागृह की ओर चल पड़ा। राजा श्रेणिक ने दूर से कूणिक के हाथ में कुल्हाडा लेकर आते देखा, तो सोचा कि क्या पता कोणिक मुझे किस बुरी मौत से मारेगा? अतएव पुत्र के हाथ से मरने की वनिस्पत स्वयं ने तालकूट विष खाकर अपने प्राणों का अन्त कर दिया। पिता की इस प्रकार कि मृत्यु देखकर वह मूर्च्छित हो गया। पिता की मृत्यु के बाद उसने अपनी राजधानी राजगृह नगर से बदल कर चम्पानगरी कर दी। कूणिक का सहोदर लघुभ्राता वेहल्लकुमार था। महाराज श्रेणिक ने अपने पुत्र वेहल्लकुमार को . सेचनक हाथी और अट्ठारहसरा हार दे रखा था। जिसका मूल्य श्रेणिक के पूरे राज्य के बराबर था। वेहल्लकुमार सेचनक हस्ती पर आरूढ़ होकर अपने अन्तःपुर के साथ गंगानदी के तट पर जलक्रीड़ा के लिए जाता था। उसकी जलक्रीड़ा को देख कर कूणिक की पत्नी पद्मावती के मन में हार और हाथी को प्राप्त करने की भावना जागृत हुई। वह पुनः पुनः कूणिक को हार और हाथी भाई से हथियाने के लिए प्रेरित करती रहती। एक दिन कूणिक ने वेहल्लकुमार को बुलाकर हार और हाथी देने का कहा, तो वेहल्लकुमार ने कहा इन्हें मुझे पिताजी ने दिए है। अतएव मैं नहीं दे सकता। वेहल्लकुमार को भय था कि कूणिक मेरे से कहीं हार और हाथी छीन न ले इसलिए समय देख कर वह हार और हाथी लेकर अपने नाना राजा चेटक के पास वैशाली पहुँच गया। जब इस बात का पता कूणिक को लगा तो उसने राजा चेटक के पास दूत भेजा और हार और हाथी को सुपुर्द करने का कहलवाया। राजा चेटक ने शरणागत की रक्षा करना अपना कर्त्तव्य समझा, उसने कूणिक को कहलवाया कि यदि तुम हार और हाथी के बदले वेहल्लकुमार को आधा राज्य देते हो तो तुम्हें हार और हाथी दिया जा सकता है। जिसके लिए कूणिक तैयार नहीं हुआ। परिणाम स्वरूप कूणिक अपने दसों भाईयों के साथ सेना लेकर वैशाली पहुंचा। . राजा चेटक ने नौ मल्लवी और नौ लिच्छवी इन अट्ठारह काशी और कौशल राजाओं को बुलाकर परामर्श किया। सभी ने कहा कि शरणागत की रक्षा करना हम क्षत्रियों का कर्तव्य है। साथ ही वेहल्लकुमार का पक्ष सत्य एवं न्याय युक्त है, जबकि कूणिक का पक्ष अन्याय युक्त है। अतएव सत्य Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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