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नेमिनाथ-चरित्र
तमाम कर डालते, परन्तु सौभाग्यवश उनके कितनेही लक्षण और तिलक आदि देखकर राजा सोमप्रभने उनका पहचान लिया। उन्होंने राजकुमारको प्रेमपूर्वक गले लगाकर कहा :- "हे कुमार ! मैंने तुम्हें पहचान लिया ! तुम तो मेरे भानजे हो !"
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राजा सोमप्रभके मुखसे राजकुमार अपराजितका परिचय पाकर सब राजाओंने युद्ध करना बन्द कर दिया । अब तक जो शत्रु बनकर युद्ध कर रहे थे, वही अब मित्र बनकर अपराजितके विवाह में योग दान करने लगे । राजा जितशत्रुने शुभमुहूर्त्त में बड़ी धूमधामसे राजकुमार अपराजितके साथ प्रीतिमतीका विवाह कर दिया । विवाहके समय राजकुमारने अपना प्रकृत रूप प्रकट किया, जिसे देखकर राजा जितशत्रु तथा राजकन्या प्रीतिमती विशेषरूपसे आनंदित हुए ।
विवाहकार्य सानन्द सम्पन्न हो जानेपर राजा जित - शत्रुने समस्त राजाओंको सम्मानपूर्वक बिदा किया । राजकुमार अपराजित अपने मित्र विमलबोधके साथ कुछ दिनोंके लिये वहीं ठहर गये और अपनी नव विवाहिता