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छठा परिच्छेद जिस समय श्रीऋषभदेवने अपना राज्य अपने पुत्रोंमें चाँटा, उस समय दैवयोग से उनके नमि और विनमि नामक दो पुत्र वहाँ उपस्थित न थे । फलतः वे दोनों राज्यसे वञ्चित रह गये | वादको वे राज्य प्राप्त करने के लिये संयमी प्रभुकी सेवा करने लगे । उनकी सेवासे सन्तुष्ट हो धरणेन्द्रने वैताढ्य पर्वतकी दो श्रेणियोंका राज्य उन्हें प्रदान किया । दीर्घ कालतक इस राज्यका सुख उपभोगकर, उन दोनोंने अपने-अपने पुत्रोंको राज्य दे, प्रभुके निकट दीक्षा ले ली और कालान्तर में मोक्षके अधिकारी हुए ।
उनके बाद नमि सुतने मातङ्ग दीक्षा ग्रहण की और इस प्रकार वे भी स्वर्गके अधिकारी हुए। उसका वंशधर इस समय प्रहसित नामक एक विद्याधरपति है। मैं उसीकी स्त्री हूँ । और मेरा नाम हिरण्यवती है। मेरे पुत्रका नाम सिंहदंष्ट्र है । सिंहदंष्ट्रके एक पुत्री है, जिसका नाम नीलया है । उसीको आपने उसदिन उद्यान जाते समय देखा था । वह तन- मनसे आप पर अनुरक्त है और मन-ही-मन अपना हृदय आपको अर्पण कर चुकी है ।