Book Title: Neminath Charitra
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Kashinath Jain Calcutta

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Page 413
________________ AN उन्नीसवाँ परिच्छेद पूर्वक द्वारिका नगरीमें प्रवेश करने लगे। मार्गमें उनकी दृष्टि ढंढण मुनि पर जा पड़ी, जो उस समय गोचरीके निमित्त नगरमें भ्रमण कर रहे थे। कृष्णने हाथीसे उतरकर अत्यन्त सम्मानपूर्वक उनको वन्दन किया। उनका. यह कार्य देखकर एक श्रेष्ठी अपने मनमें कहने लगा. कि:-"यह कोई अवश्य ही महान मुनि हैं, तभी तो कृष्ण इनको वन्दन कर रहे हैं।" इसके बाद गोचरीके निमित्त भ्रमण करते हुए ढंडण मुनि भी उसी सेठके घर जा पहुंचे। सेठने उनका अत्यन्त सत्कार कर भक्तिपूर्वक उनको लड्डु प्रदान किये । ढंढण लड्ड्ड लेकर भगवानके पास आये और उनसे कहने लगे कि :-"है स्वामिन् ! मालूम होता है कि मेरा अन्तराय कर्म क्षीण हो गया है, क्योंकि आज मुझे अपनी लब्धिसे आहार प्राप्त हुआ है।" भगवानने कहा:-तुम्हारा अन्तराय कर्म क्षीण नहीं हुआ है। यह तो कृष्णकी लब्धि है। तुमको कृष्णने वन्दन किया था, इसीलिये भद्रकभावी श्रेष्ठीने तुमको आहार दिया है।"

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