Book Title: Neminath Charitra
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Kashinath Jain Calcutta

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Page 424
________________ वीसा परिच्छेद भस्म हो होकर मिट्टीमें मिल रहे थे, चारों ओर अग्निकी भयंकर लपटोंके सिवा और कुछ भी दिखायी न देता था । प्रलयकालके समुद्रकी भाँति उस समय समूचे नगर पर अग्निकी लपटें हिलोरें मार रही थीं। द्वारिका नगरीके. समस्त लोग अपनी समस्त सम्पत्तिके साथ उसीमें विलीन हो रहे थे। उस समय उनका चित्कार सुननेवाला या उनके प्रति सहानुभूति दिखानेवाला कोई भी न था । ___ नगर और नगरनिवासियोंकी यह अवस्था देखकर कृष्णका हृदय विदीर्ण हो गया। उन्होंने वलरामसे कहा :--"अहो ! मुझे धिक्कार है कि नपुंसककी भाँति इस समय मैं तटस्थ रहकर अपनी जलती हुई नगरीको देख रहा हूँ। मैं इस समय जिस प्रकार नगरीकी रक्षा करनेमें असमर्थ हूँ, उसी प्रकार इस प्रलयकारी दृश्यको देखनेमें भी असमर्थ हूँ। इसलिये हे आर्य ! शीघ्र कहो, कि इस समय हमें कहाँ जाना चाहिये ? मुझे तो इस विपत्तिकालमें कोई भी अपना मित्र नहीं दिखायी देता।" चलरामने कहा :-हे बन्धो! ऐसे समयमें

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