Book Title: Neminath Charitra
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Kashinath Jain Calcutta

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Page 430
________________ एकइसका परिच्छेद बलराम की इस तपस्याका हाल अपनें अपने राजासे कहा । इसपर सभी राजा चिन्तित हो उठे और कहने लगे. कि हमारा राज्य छीननेके लिये ही तो कोई यह तप नहीं कर रहा है ? उन लोगोंमें अधिक विचार 'शक्ति न थी, इसलिये उन्होंने स्थिर किया कि उसे मारकर सदाके लिये यह चिन्ता दूर कर देनी चाहिये । निदान,, उन सवोंने एक साथ मिलकर अपनी अपनी सेनाके साथ, उस वनके लिये प्रस्थान किया। जब वे बलराम मुनिके पास पहुँचे, तब उनके रक्षपाल सिद्धार्थने अनेक भयंकर सिंह उत्पन्न किये, जिनकी गर्जना से सारा वन प्रतिध्वनित हो उठा। राजांगण इसे मुनिराजका प्रताप समझ कर बहुत ही लजित हुए और उनसे क्षमा 'प्रार्थना कर अपने अपने स्थानको वापस चले गये। इस दिनसे वलराम आसपासके स्थानोंमें नरसिंह मुनिक नामसे सम्बोधित किये जाने लगे । उनकी तपस्या और उनके धर्मोपदेशके प्रभावसे सिंहादिक हिंसक पशुओंको भी आन्तरिक शान्ति प्राप्त हुई। उनमें से अनेक श्रावक हुए, अनेक भद्रक हुए, अनेकने कोयोतार्ग

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