Book Title: Neminath Charitra
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Kashinath Jain Calcutta

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Page 431
________________ ८७० नामनाया नेमिनाथ-चरित्र' किया, और अनेकने अनशन किया। मांसाहारसे तो प्रायः सभी निवृत्त हो गये और तिर्यश्च रूपधारी शिष्यों की भाँति वे महामुनि बलरामके रक्षक होकर सदा उनके निकट रहने लगे। जिस वनमें बलराम तपस्या करते थे, उसी वनमें एक मृग रहता था। वह बलरामके पूर्वजन्मका कोई सम्बन्धी था। जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न होनेके कारण उसे अत्यन्त संवेग उत्पन्न हुआ था, फलतः वह बलरामका सहचारी बन गया था। बलराम मुनिकी उपासना कर, वह हरिण वनमें घूमा करता और अन्न सहित तृण काष्टादिक संग्रह करनेवालोंको खोजा करता। यदि सौभाग्यवश, कभी कोई उसे मिल जाता, हो वह ध्यानस्थ बलराम मुनिके चरणों पर शिर रखकर, उन्हें इसकी सूचना देता। बलराम भी उसका अनुरोध मानकर, क्षण भरके लिये ध्यानको छोड़, उस अग्रगामी हरिणके पीछे पीछे उस स्थान तक जाते और वहाँसे भिक्षा ग्रहण कर अपने वासस्थानको लौट आते। एकबार अच्छे काष्टकी तलाश करते हुए कई स्थकार

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