Book Title: Neminath Charitra
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Kashinath Jain Calcutta

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Page 418
________________ बीसवाँ परिच्छेद ८३९. वहाँ उन्होंने पुनः पहले जैसी घोषणा करायी, P आये । जिससे नगरनिवासी धर्मकार्य में विशेष रूपसे प्रवृत्त . रहने लगे । उधर कुछ दिनोंके बाद पायन मुनिकी मृत्यु हो गयी ! मृत्युके बाद दूसरे जन्ममें वह अभिकुमार हुआ । यथा समय पूर्व वैरका स्मरण कर वह द्वारिकामें आया, किन्तु वहाँके लोगोंको चतुर्थ, षष्ठ अष्टमादिक तप तथा देवपूजा आदि धर्म - कार्य करते देख वह उनका कुछ भी न बिगाड़ सका । इसके बाद अवसरकी प्रतीक्षा करते हुए उसने ग्यारह वर्ष तक वहाँ वास किया। बारहवाँ वर्ष आरम्भ होने पर लोग समझने लगे कि हमारे धर्माचरणसे इपायन पराजित हो गया। यदि इतने दिनों में वह हमारा कोई अनिष्ट न कर सका, तो अब उससे डरनेका कोई कारण नहीं | इस प्रकार विचार कर सब लोग धर्म-कर्म छोड़, इच्छानुसार मद्यमांसका सेवन करने लगे । बस, लोगोंके धर्म-विमुख होते ही द्वैपायनको मौका मिल गया। अब आये दिन द्वारिका नगरीमें नये नये उत्पात होने

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