Book Title: Neminath Charitra
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Kashinath Jain Calcutta

View full book text
Previous | Next

Page 420
________________ ८४१ बीसवाँ परिच्छेद नगरी में खिंच कर इकट्ठा हो गया । प्राण भयसे जो लोग भागकर नगरके बाहर चले गये थे, वे भी सब इस वायुसे खिंच कर नगर में आ पड़े। इस प्रकार अगणित वृक्ष, बहत्तर कोटि नगर निवासी और साठ कोटि आसपासके लोगोंको द्वारिकामें एकत्र कर द्वैपायनने उसमें आग लगा दी । प्रलयकालके वायुसे प्रेरित और निविड़ धूम्रसमूहसे संसारको अन्ध बनानेवाली वह अग्नि देखते ही देखते चारों ओर फैल गयी और समूची नगरी धॉय धॉय जलने लगी । एक ओर वायुका प्रबल तूफान, दूसरी ओर अन्ध चनानेवाला धुआँ और तीसरी ओर आगकी भयंकर लपटोंने लोगोंको हत बुद्धि बना दिया । उन्हें अपनी रक्षाका कोई भी उपाय न सूझ पड़ा। वे एक दूसरेसे चिपट - चिपट कर जहाँके तहाँ खड़े रह गये और अग्निमें जलजल कर धुएं घुट घुट कर अपना प्राण त्याग करने लगे । बलराम और कृष्णने वसुदेव, देवकी तथा रोहिणी -

Loading...

Page Navigation
1 ... 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433