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बीसवाँ परिच्छेद नगरी में खिंच कर इकट्ठा हो गया । प्राण भयसे जो लोग भागकर नगरके बाहर चले गये थे, वे भी सब इस वायुसे खिंच कर नगर में आ पड़े। इस प्रकार अगणित वृक्ष, बहत्तर कोटि नगर निवासी और साठ कोटि आसपासके लोगोंको द्वारिकामें एकत्र कर द्वैपायनने उसमें आग लगा दी ।
प्रलयकालके वायुसे प्रेरित और निविड़ धूम्रसमूहसे संसारको अन्ध बनानेवाली वह अग्नि देखते ही देखते चारों ओर फैल गयी और समूची नगरी धॉय धॉय जलने लगी ।
एक ओर वायुका प्रबल तूफान, दूसरी ओर अन्ध चनानेवाला धुआँ और तीसरी ओर आगकी भयंकर लपटोंने लोगोंको हत बुद्धि बना दिया । उन्हें अपनी रक्षाका कोई भी उपाय न सूझ पड़ा। वे एक दूसरेसे चिपट - चिपट कर जहाँके तहाँ खड़े रह गये और अग्निमें जलजल कर धुएं घुट घुट कर अपना प्राण त्याग करने लगे ।
बलराम और कृष्णने वसुदेव, देवकी तथा रोहिणी -