Book Title: Neminath Charitra
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Kashinath Jain Calcutta

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Page 419
________________ ૮૪૦ नेमिनाथ चरित्र लगे। कभी उल्कापात होता, कभी मेघकीसी गर्जना सुनायी देती, कभी भूकम्प होता, कभी सूर्यमण्डलसे अग्निवर्षा होती, कभी अचानक सूर्य्य या चन्द्रग्रहण होता, पत्थरकी पुतलियाँ भी अस्वाभाविक रुपसे हास्य करने लगतीं कमा चित्राङ्कित देव भी क्रोध दिखाते, कभी व्याघ्र आदिक हिंसक पशु नगरमें विचरण करते । और कभी द्वैपायन असुर, भूत, प्रेत तथा वैताल आदिको साथ लेकर चारों ओर घूमता हुआ दिखायी देता । उसी समय स्वममें लोगोंको ऐसा मालूम हुआ मानो उनका शरीर रक्त वस्त्रसे ढका हुआ है और वे कीचड़ में सने हुए, दक्षिण दिशाकी ओर खिंचे जा रहे हैं । कृष्ण और बलरामके हल मूशल तथा चक्रादिक अस्त्र भी इसी समय अचानक नष्ट हो गये । इन सब उत्पातोंके कारण नगर में आतङ्क छा गया और सब लोग समझ गये कि अब विनाशकाल समीप आ गया है । उपरोक्त प्रकारके आरम्भिक उपद्रवोंके बाद द्वायनने शीघ्र ही संवर्तक वायु उत्पन्न किया । इस वायुके कारण चारों ओरसे न जाने कितना तृणकाष्ट द्वारिका ܂ "

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