Book Title: Neminath Charitra
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Kashinath Jain Calcutta

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Page 414
________________ - - ८२२ नेमिनाथ-चरित्र ___ यह सुनकर रागादि रहित टंडण मुनिने उन लड्डुओंको परलब्धि मानकर उनका त्याग कर दिया। तदनन्तर वे अपने मनमें कहने लगे :-"अहो ! जीवोंके. पूर्वोपार्जित कर्म दुरन्त होते हैं।" इसी समय स्थिर ध्यान करते और भवका स्वरूप सोचते सोचते ढंठण मुनिको केवलज्ञान उत्पन्न हो गया। फलतः देवताओंने उनकी पूजा की और उन्होंने केवलीकी सभामें स्थान ग्रहण किया। ____ एकवार नेमि प्रभु ग्राम, और नगरादिकमें विहार करते हुए पापादुर्ग नामक नगरमें जा पहुंचे। वहाँ भीम नॉमक राजा राज्य करता था। उसकी रानीका नाम सरस्वती था, जो राजगृहके राजा जितशत्रुकी पुत्री थी। सरस्वती जन्मसे ही परम मूर्ख थी। इसलिये उसके पतिने भगवानको बन्दन करने के बाद उनसे प्रश्न किया कि :-भगवन् ! मेरी यह रानी इतनी मूर्खणी क्यों हैं।" इस पर भगवानने कहा :--'हे राजन् ! पूर्वजन्ममें पद्मराजके पद्मा और चन्दना नामक दो रानियाँ थीं। राजाने एकदिन पासे एक गाथाका अर्थ पूछा,

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