Book Title: Neminath Charitra
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Kashinath Jain Calcutta

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Page 397
________________ ७४२ अठारहवाँ परिच्छेद यह अच्छा हुआ, जो उसके गुण आरम्भ में ही प्रकट हो गये। व्याहके बाद यदि उसने ऐसी निष्ठुरता दिखलायी होती, तो निःसन्देह वह कुएँमें उतार कर रस्सी काट देनेका सा काय होता। अब उसे जाने दो। शाम्ब, प्रधुम्न आदि और भी अनेक राजकुमार हैं। उनमेंसे जिसके साथ इच्छा हो, उसके साथ तुम्हारा व्याह किया जा सकता है। हे सखी! संकल्प मात्रसे तुम नेमिको दी गयी थीं, परन्तु उसके स्वीकार न करने पर तुम अब भी कन्या ही हो" सखियोंके यह वचन राजीमतीको बहुत ही अप्रिय मालूम हुए। उसने ऋद्ध होकर कहा:-"तुमलोग कुलटाकी भाँति कुलको कलङ्कित करनेवाली यह कैसी बातें कहती हो ? नेमि तो तीनों लोकमें उत्कृष्ट हैं। संसारमें क्या कोई भी पुरुष उनकी बराबरी कर सकता है ? और यदि कर भी सकता हो, तो उनसे मुझे क्या प्रयोजन ?-क्योंकि कन्यादान एक ही बार किया जाता है। मैंने मन और वचनसे नेमिकुमारको ही पति माना था और उन्होंने भी गुरुजनोंके अनुरोधसे मुझे

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