Book Title: Neminath Charitra
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Kashinath Jain Calcutta

View full book text
Previous | Next

Page 404
________________ - उन्नीसवाँ परिच्छेद ५९६ बाद वे शीघ्रही अट्ठम तप द्वारा इन्द्रके सेनापति हरिगीगमेषी देवकी आराधना करने लगे। इसपर हरिगीगमेषीने प्रकट होकर कहा :-"है कृष्ण! आपकी इच्छानुसार आपकी माताके आठवाँ पुत्र अवश्य होगा, परन्तु पुण्यात्मा होनेके कारण यौवन प्राप्त होते ही वह दीक्षा ले लेगा।" कृष्णने इसमें कोई आपत्ति न की, इसलिये वह देव कृष्णको वैसा वर देकर अन्तर्धान हो गया। इसके बाद शीघ्रही देवलोकसे एक महर्द्धिक देव च्युत होकर देवकीके उदरसे पुत्र रूपमें उत्पन्न हुआ। देवकीने उसका नाम गजसुकुमाल रक्ता। कृष्णके समान उस देवकुमार जैसे बालकको देवकीने खूब खिलाया और जी भर कर उसका दुलार-प्यार किया। क्रमशः जब वह वालक बड़ा हुआ और उसने युवावस्थामें पदार्पण किया, तब वसुदेवने द्रुम राजाकी प्रभावती नामक सुन्दर कन्यासे उसका विवाह कर दिया। दूसरी ओर कृष्णादिक भाइयाँने तथा माता देवकीने सोमा नामक एक कन्यासे विवाह करनेके लिये उस पर जोर डाला। सोमा

Loading...

Page Navigation
1 ... 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433