Book Title: Neminath Charitra
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Kashinath Jain Calcutta

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Page 406
________________ ८१४ नेमिनाथ-चरित्र : करनेके लिये तुम्हारे साथ उसका विवाह नहीं किया । उसे अब तुम राजकुमारी नहीं, किन्तु अपनी पत्नी समझो और पत्नीकी ही तरह उससे सब काम लो । यदि वह सीधी तरह सब काम न करे तो तुम मार-पीट भी कर सकते हो यदि तुम ऐसा न करोगे, तो मैं तुम्हें कैदखाने में बन्द करवा दूँगा बेचारा वीर अपने भाग्यको कोसता हुआ अपने घर लौट आया । कृष्णकी यह कृपा उसके लिये भार रूप हो पड़ा थी, परन्तु अब क्या, अब तो गले पड़ा ढोल बजाने मेंही शोभा थी । इसलिये घर आते ही उसने केतुमंजरीको एक फटकार सुनाते हुए कहा :"तू निठल्ली होकर क्या बैठी रहती है ? कपड़ोंके लिये जल्दी माड़ वना ला !" केतुमंजरी तो उसका यह रोब देखकर सन्नाटे में आ गयी। उसने कहा :-- " तू क्या जानता नहीं है, कि मैं कौन हूँ? मुझ पर हुक्म चलाने के पहले आइने में अपना मुँह तो देख आ !" कृष्णने तो वीरसे मारपीट करने को भी कह दिया ש

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