Book Title: Neminath Charitra
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Kashinath Jain Calcutta

View full book text
Previous | Next

Page 408
________________ ६ नेमिनाथ चरित्र का द्वादशावर्त्तवन्दना करने लगे। उस समय समस्त राजा थक कर वीचहीमें बैठ गये, परन्तु कृष्णकी भक्ति और कृपाके कारण वीरको थकावट न मालूम हुई और उसने भी कृष्णकी भाँति द्वादशावत्र वन्दनामें सफलता प्राप्त की। वन्दना पूरी होने पर कृष्णने भगवानसे कहा :-'हे भगवन् ! तीन सौ साठ संग्राम करने पर मुझे जितनी थकावट न मालूम हुई थी, उतनी यह वन्दना करने पर मालूम होती है !" कृष्णका यह वचन सुनकर भगवानने कहा :"तुमने आज बहुत पुण्य प्राप्त किया है और क्षायिक सम्यक्त्व तथा तीर्थकर नाम कर्म भी उपार्जन किया है। अब तक तुम्हारी आयु सातवें नरकके योग्य थी, परन्तु आजसे वह घटकर तीसरे नरक योग्य हो गयी है। इसी पुण्यके प्रभावसे तुम अन्तमें निकाचित भी कर सकोगे।" ___कृष्णने आनन्दित होकर कहा :-"हे नाथ ! यदि ऐसी ही बात है, तो एकवार मैं पुनः वन्दना करूंगा, जिससे मेरी नरकायु समूल नष्ट हो जाय ।"

Loading...

Page Navigation
1 ... 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433