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'. नेमिनाय-चरित्र अब आप तीथ प्रवर्तित कीजिये।" इसके बाद इन्द्रके आदेशानुसार जम्भक देवताओंके भरे हुए द्रव्यसे भगवान वार्षिक दान देने लगे।" ___उधर राजीमतीने जब सुना कि नेमिकुमार दीक्षा लेना चाहते हैं और इसीलिये वे द्वार परसे लौटे जा रहे हैं, तब वह व्याकुल हो पृथ्वी पर गिर पड़ी। यह देख कर उसकी सखियाँ अत्यन्त चिन्तित हो गयीं। उन्होंने समुचित उपचार कर शीघ्र ही उसे सावधान किया। उस समय राजीमतीके युगल कपोलों पर केश लटक रहे थे और अश्रुओंसे उसकी कञ्चुकी भीग गयी थी। होशमें आते ही उसे सब बातें फिर स्मरण हो आयीं,
और वह विलाप करते हुए कहने लगी-"हा दैव ! मैंने तो कभी स्वममें भी यह मनोरथ नहीं किया था कि नेमिकुमार मेरे पति हो। फिर तूने किसकी प्रार्थनासे उनको मेरा पति बनाया? और यदि उनको मेरा पति बनाया, तो असमयमें वज्रपात की भॉति तूने यह विपरीत घटना क्यों घटित कर दी? निःसन्देह तू महा कपटी और विश्वास घातक है। मैंने तो अपने