Book Title: Neminath Charitra
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Kashinath Jain Calcutta

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Page 391
________________ MMM अठारहवाँ परिच्छेद पूण करना चाहिये। यदि तुम ऐसा न करोगे, तो तुम्हारे माता-पिताको बड़ाही दुःख होगा। जिस प्रकार तुमने प्राणियोंको बन्धन-मुक्त कर उनको आनन्दित किया है, उसी प्रकार अपना विवाह दिखाकर अपने स्वजन स्नेहियोंको भी आनन्दित करना तुम्हें उचित है। नेमिकुमारने नम्रतापूर्वक कहा :-प्रिय वन्धु ! मुझे मातापिता और आपलोगोंके दुःखका कोई कारण नहीं दिखायी देता है। मेरा वैराग्यका कारण तो चारगति रूप यह संसार है, जहाँ जन्म होने पर प्राणीको प्रत्येक जन्ममें दुःख ही भोगना पड़ता है। जीवको प्रत्येक जन्ममें माता, पिता, भाई तथा ऐसे ही अनेक सम्बन्धी प्राप्त होते हैं, परन्तु इनमेंसे कोई भी उसका कर्मफल नहीं बॅटाता। उसे अपना कर्म स्वयं ही भोग करना पड़ता है। हे बन्धो! यदि एक मनुष्य दूसरेका दुःख वटा सकता हो, तो विवेकी पुरुषको चाहिये, कि अपने माता पिताके लिये वह अपना प्राण तक दे दे, परन्तु पुत्रादि होनेपर भी प्राणीको जन्म, जरा और मृत्युका दुःख तो.

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