Book Title: Neminath Charitra
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Kashinath Jain Calcutta

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Page 389
________________ अठारहवाँ परिच्छेद ७११ र्वाद देते हुए अपने अपने स्थानको चले गये। इधर नेमिक्कुमारने सारथीको आज्ञा दी, कि अब अपना स्थ वापस लौटा लो ! तदनुसार सारथीने ज्योंही रथको घुमाया, त्योंहीं चारों ओर घोर हाहाकार मच गया । राजा समुद्रविजय, वलराम, कृष्ण, शिवादेवी, रोहिणी, देवकी तथा अन्यान्य स्वजन भी अपने अपने वाहनसे उतर कर उनके पास दौड़ गये । राजा समुद्रविजय तथा शिवादेवीने आँसू बहाते हुए पूछा :- "हे पुत्र ! अचानक इस तरह तुम वापस क्यों जा रहे हो ? आज विवाहकी अन्तिम घड़ी है, ऐसे समय रंग में भंग क्यों कर रहे हो ?" नेमिकुमारने गंभीरतापूर्वक कहा :- "पिताजी ! मुझे आप लोग क्षमा करिये, मैं व्याह नहीं करना चाहता यह सब प्राणी अब तक जिस प्रकार बन्धन से बँधे हुए थे, उसी प्रकार हमलोग भी कर्म बन्धन से बँधे हुए हैं। जिस प्रकार यह अब बन्धन-मुक्त हुए हैं, उसी प्रकार मैं भी अपने आत्माको कम-बन्धनसे रहित करनेके लिये समस्त सुखोंकी कारण रूप दीक्षा ग्रहण करूँगा ।" 1

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