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छठा परिच्छेद दूसरेके पुत्र होगा, तो उन दोनोंका व्याह आपसमें ही कर देंगे।
इसके बाद नीलाञ्जनाका व्याह हमारे राजाके साथ हुआ और उसके उदरसे नीलयशानामक पुत्री हुई, जिसका विवाह आपके साथ किया गया है। ऐसा करनेका कारण यह था कि हमारे महाराजको एकवार बृहस्पति नामक मुनिने बतलाया था कि नीलयशाका विवाह अर्ध भरतके स्वामी, विष्णुके पिता, यदुकुलोत्पन्न परम रूपवान वसुदेव कुमारके साथ होगा। इसीलिये महाराजने विद्याके वल आपको यहाँ बुलाकर आपके साथ उसका विवाह कर दिया है। उधर नीलकुमारके एक पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसका नाम उसने नीलकण्ठ रखा। नीलने उसके लिये नीलयशाकी मंगनी की, किन्तु उसका विवाह आपके साथ हो जानेके कारण उसे निराश होना पड़ा। आज उसीने नीलकण्ठके साथ यहाँ आकर बड़ा उत्पात मचाया है, किन्तु महाराजकी आज्ञासे वह बाहर निकाल दिया गया है। यह कोलाहल इसीलिये मचा हुआ है। किन्तु अब डरकी कोई बात नहीं है।"