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सातवाँ परिच्छेद
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कंठमें यह घुंघरू क्यों बंधे होते ! ओह ! कितना सुन्दर पक्षी है ! मुझे तो यह बहुत ही प्यारा मालूम होता है । मैं इसे पकड़े बिना न रहूँगी । यह चाहे जिसका हो, किन्तु मैं अब इसे अपने ही पास रक्खूँगी ।"
इस प्रकार विचार कर उस हँस - गामिनी कन्याने
गवाक्षमें बैठे हुए उस हॅसको पकड़ लिया। इसके बाद वह अपना कमल समान कोमल हाथ उसके बदन पर फिरा-फिरा कर उसे बड़े प्रेमसे दुलारने लगी। इतनेही में उसकी एक सखी आ पहुँची । उसने उससे कहा :"देखो सखी ! मैंने यह कैसा वढ़िया हँस पकड़ा है ! तुम शीघ्र ही इसके लिये सोनेका एक पींजड़ा ले आओ । मैं उसमें इसे बन्द कर दूँगी, वर्ना यह जैसे दूसरे स्थानसे उड़कर यहाँ आया है, वैसेही यहाँसे किसी दूसरे स्थानको उड़ जायगा ।"
कनकवतीकी यह बात सुनकर उसकी सखी पींजड़ा लेने चली गयी। इधर उस हँसने मनुष्यकी भाषामें बोलते हुए राजकुमारीसे कहा :- "हे राजपुत्री ! तुम बड़ी समझदार हो, इसलिये मैं तुमसे तुम्हारे हितकी एक