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नेमिनाय-परित्र धुआँ निकलता, दिखायी दिया। वह इस प्रकार ऊँचे चढ़ रहा था, मानो सूर्य चन्द्र और वाराओंको श्याम बनाने के लिये वहाँ जा रहा हो। शीघ्र ही उस स्थानमें आगकी भयंकर लपटें दिखायी देने लगी। पशुओंमें भगदड़ मच गयी। पक्षियोंने, उड़ उड़कर दूसरे जंगलका रास्ता लिया। हरे भरे वृक्ष : भी इस दावानलकी प्रबलताके कारण इस प्रकार भस्म होने लगे, मानो.सूखा,हुआ हण भस्म हो रहा हो । नल भी यह दावानल देखकर कन्य विमूढ़ बन गये। .. .
ठीक इसी समय उस दावानलके ..अन्दरसे नलको किसी मनुष्य की सी, आवाज आती हुई सुनायी दी। उन्होंने कान लगाकर सुना तो उन्हें मालूम, हुआ, कि कोई अपनी रक्षाके लिये उनसे पुकार पुकार कर प्रार्थना कर रहा है। वह कह रहा. था :-"हेइक्ष्वाकुकुल-तिलक राजा, नल ! हे क्षत्रियोत्तम !, मेरी रक्षा कीजिये । आप यद्यपि निष्कारण उपकारी हैं, तथापि यदि आप मेरी प्राण रक्षा करेंगे तो मैं भी उसके. बदले. ऑपका कुछ उपकार कर दूंगा।" :. :::: .