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आठवा परिच्छेद ।
३५५ सहित उसे तापसपुरका राज्य देकर उन्होंने उसे अपने सामन्तोंमें शामिल कर लिया। उन्होंने उसका नाम भी बदलकर वसन्तः श्रीशेखर रख दिया। इस प्रकार राज-सम्मान प्राप्त कर वह विजय-भेरी बजाता हुआ तापसपुर लौट आया। उस समयसे वह वहींपर रहता है
और प्रेमपूर्वक प्रजाका पालन करता है।" । . वसन्तका यह समाचार सुनकर और उसे सुखी जानकर दमयन्तीको अत्यन्त आनन्द हुआ। उन्होंने उस चोरसे ,कहा :- हे वत्स ! तुमने पूर्व जन्ममें दुष्कर्म किये थे। उन्हींका फल तुम इस जन्ममें भोग कर रहे हो। अब तुम्हें दीक्षा लेकर उन दुष्कर्मों को क्षय कर देना चाहिये।
चोरने कहा::-"माताजी ! मैं आपकी आज्ञा शिरोधार्य करनेको तैयार हूँ।" . - इसी समय..वहाँपर कहींसे दो साधु आ पहुँचे।
दमयन्तीने उन्हें ; दोष रहित भोजन करानेके बाद कहा :- हे भगवन् ।... यदि यह पुरुष योग्य हो, तो इसे दीक्षा देनेकी कृपा कीजिये।