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छठा परिच्छेद
१९५ भाँति उनके कंठमें लिपट आयी। वसुदेव भी उसे आलिङ्गन कर नाना प्रकारके, मधुर वचनों द्वारा उसे सान्त्वना देने लगे। जब वह शान्त हुई तब उन्होंने उससे पूछा:-"प्रिये ! तुम्हें मेरा पता किस प्रकार मिला?" तुमने मुझे कैसे खोज निकाला?"
वेगवतीने कहा :-हे नाथ ! शैव्यासे उठने पर जब मैंने आपको न देखा तब मैं व्याकुल हो उठी और आपके वियोगसे दु:खित हो, करुण-क्रन्दन करने लगी। इतनेमें प्रज्ञप्ति विद्याने मुझसे आपके हरण और पतनका हाल बतलाया। इसके बाद आपका क्या हुआ, या आप कहाँ गये~~यह मुझे किसी तरह मालूम न हो सका। मैंने सोचा कि शायद आप किसी ऋपिके पास गये होंगे और उसीके प्रभावसे प्रज्ञप्ति विद्या आपका हाल बतलाने में असमर्थ है।
. इसके बाद मैं बहुत दिनों तक आपकी राह देखती रही किन्तु जब आप वापस न आये, तब मैं राजाकी आज्ञा लेकर आपको खोजनेके लिये निकल पड़ी। थोड़ें ही दिनोंके अन्दर मैने न जाने कहाँ कहाँकी खाक छान