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नेमिनाथ-चरित्र छिपे और न जाने कितने जलमें समा गये। हम दोनों भी वहॉसे भागकर यहाँ चले आये और अपना प्राण बचानेके लिये हमने यह तापस वेश धारण कर लिया है। "हे महापुरुष ! हमें अपनी इस कायरताके लिये बड़ा ही अफसोस हो रहा है।"
यह सुनकर वसुदेवने पहले तो उन्हें सान्त्वना दी और बाद को जब वे शान्त हुए तब उन्हें जैन धर्मका उपदेश दिया। इससे उन्होंने जैनधर्मकी दीक्षा ले ली । इसके बाद वसुदेव श्रावस्ती नगरमें गये। वहाँपर एक उद्यानमें उन्होंने एक ऐसा देवमन्दिर देखा, जिसके तीन दरवाजे थे, मुख्य द्वारमें बत्तीस ताले जड़े हुए थे, इसलिये वे दूसरे द्वारसे प्रवेश कर उसके अन्दर पहुंचे । वहॉपर देवगृहमें उन्होंने तीन मूर्तियाँ देखीं। जिनमें से एक किसी ऋषिकी, एक किसी गृहस्थकी और एक तीन पैरके भैंसे की थी। इन मूर्तियोंको देखकर उन्होंने एक ब्राह्मणसे इसके सम्बन्धमें पूछताछ की। उसने कहा :--
यहाँ पर जितशत्रु नामक एक राजा थे, जिनके मृगध्वज नामक एक पुत्र था। उन्हींके जमानेमें यहाँ