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नेमिनाथ-चरित्र की मृत्यु हो गयी है और उसके शवको हजारों आदमी श्मशान लिये जा रहे हैं। शचके पीछे कई स्त्रियाँ बालं बिखेरे हृदय मेदक ध्वनिसे करुण क्रन्दन कर रही थीं। राजाने सेवकसें पूछा :-'यह कौन है ?-किसकी मृत्यु हो गयी है ?" सेवकने बतलाया-"महाराज ! यह वही अनङ्गदेव' सार्थवाह है, जिसे कल आपने बगीचें में देखा था। आज विशूचिकाहैजेकी 'बीमारीसें इसकी मृत्यु हो गयी है !" ... यह सुनकर राजाको बड़ाही दुःख हुआ। साथहीं मनुष्य जीवन की यह क्षणभंगुरता देखकर उनका हृदयें वैराग्यसे भर गया। वे खिन्नतापूर्वक अपने वासस्थानको लौट आये और यथानियम अपने राजकाज देखने लगे, परन्तु इस दिनसे किसी भी काममें उनका जी न लग सका। उनकी आन्तरिक शान्ति नष्ट हो गयी और उसकी स्थान सदाके लिये अशान्तिने अधिकृतं कर लिया।
पाठकोंको स्मरण होगा, कि देशाटनके समय कुण्डलपुरमें अपराजितको एक केवलीके दर्शन हुए थे। कुछ दिनोंके बाद वहीं केवली भगवान एक दिन सिंहपुरं आ