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नेमिनाथ-चरित्र
मुनिराजका यह प्रश्न सुनकर मैंने अपना सब हाल उन्हें कह सुनाया। इतनेहीमें उन्हींके समान दो विद्याधर वहाँ आ पहुँचे और मुनिराजको प्रणाम कर उनके पास बैठ गये। उनकी मुखाकृति और आकार-प्रकार देखकर मैं तुरन्त समझ गया कि यह दोनों मुनिराजके पुत्र होंगे। मेरा यह अनुमान ठीक भी निकला । मुनिराजके परिचय कराने पर उन दोनोंने मुझे भी बड़े प्रेमसे प्रणाम किया। इसी समय वहाँ पर आकाशसे एक विमान उतरा । उसमें से एक देवने उत्तर कर सबसे पहले तीन बार प्रदक्षिणा कर मुझे प्रणाम किया, और मेरे बाद मुनिराजकी वन्दना की। यह वन्दन-विपर्यय देखकर उन दोनों विद्याधरोंने उस देवसे इसका कारण पूछा। उत्तरमें उसने कहा कि यह चारुदत्त मेरे धर्माचार्य है। विद्याधरोंने चकित होकर पूछा :-"क्या? यह आपके धर्माचार्य हैं ? यह कैसे हुआ?"
उस देवने कहा:-"काशी नगरीमें वेदको जाननेवाली सुभद्रा और सुलसा नामक दो बहिनें रहती थीं। वे परित्राजिकाएँ थीं और उन्होंने शास्त्रार्थमें अनेक
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