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छठा परिच्छेद
१५३ 'हे मित्र ! तुम्हें खेद करनेकी जरूरत नहीं, क्योंकि सौभाग्यवश तुम रसमें न गिरकर कूऍकी वेदिका पर गिरे हो। खैर, इस रसको पीनेके लिए एक गोह इस कूऍमें आया करती है। तुम उसकी प्रतीक्षा करो। जब वह यहाँ आये तब तुम उसकी पूछ पकड़ लेना। इस प्रकार तुम अनायास इस कूऍसे बाहर निकल जाओगे। यदि मेरे पैर गल न गये होते तो मैंने भी अपने उद्धारके लिये इसी उपायसे काम लिया होता।" ____ उसकी यह बात सुनकर मुझे बहुत ही सन्तोष हुआ
और मैं कई दिन तक उस हुऍमें पड़ा रहा । एक दिन 'मेरे सामने ही मेरे उस मित्रकी मृत्यु हो गयी। अब मुझे कोई सान्त्वना देनेवाला भी न रहा। इतनेमें एक "दिन मुझे एक प्रकारका भयंकर शब्द सुनायी दिया। उसे सुनकर मैं बहुत डर गया, किन्तु फिर मुझे खयाल आया कि शायद वही गोह आ रही होगी। मेरा यह अनुमान सत्य निकला। शीघ्रही वहाँ एक गोहने आकर उस रसका पान किया। इसके बाद ज्योंही वह चाहर निकलने लगी, त्योंही मैं उसकी पूछ दोनों हाथसे