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छठा परिच्छेद
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कौन कहे, बड़े-बड़े संगीताचार्यों ने भी उनके सामने हार मान ली ।
जब वसुदेवकी विजय में कोई सन्देह न रहा, तब चारुदत्त सभा विसर्जन कर उन्हें सम्मानपूर्वक अपने मकान पर लिया ले गया। वहाँ पर गन्धर्वसेना और उनके विवाहका आयोजन किया गया । व्याहके समय चारुदत्तने पूछा --
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"है वत्स ! तुम्हारा कौन गोत्र है !" बसुदेवने हॅसकर कहा :- "आप जो समझ लें वही गोत्र है ।" चारुदत्तने इसे उपहास समझ कर कहा :- "गन्धर्वसेनाको वणिक पुत्री मानकर आप उपहास कर रहे हैं, किन्तु इसके कुलादिकका वास्तविक वृत्तान्त मैं फिर किसी समय आपको सुनाऊँगा ।"
किसी तरह उन दोनोंका विवाह निपट गया । चारुदत्तने इस समय बड़ा उत्सव मनाया और दानादिक. में प्रचुर धन व्यय किया । सुग्रीव और यशोग्रीवने भी वसुदेवके गुणोंपर मुग्ध हो, अपनी श्यामा और विजया नामक दो कन्याओंका उनसे विवाह कर दिया । वसुदेव अपनी इन नव-विवाहित पत्नियोंके साथ अपने दिन सुखपूर्वक व्यतीत करने लगे ।