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तीसरा परिछेद
कन्याओंके साथ वहाँ आ पहुँच, जिनके साथ राजकुमारने ज्याह किया था । विद्याधर सरकान्त भी कहींसे घूमताघामता वहाँ आ पहुँचा। राजकुमारने अपनी समस्त पत्तियों तथा भूचर और संचर राजाओंके साथ सिंहपुरकी ओर प्रस्थान किया ।
शीघ्र ही यह सब दल सिंहपुर जा पहुँचा । चहाँ उसके आगमनका समाचार पहले ही पहुँच गया था, -इसलिये नगर - निवासियोंने उनके स्वागत के लिये बड़ीबड़ी तैयारियां कर रक्खी थीं। जिस समय राजकुमार अपराजित अपनी पत्नियोंके साथ अपने माता- पिताके सामने पहुँचे, उस समयका दृश्य बहुतही हृदयस्पर्शी था । सबकी आँखोंमें आनन्दाश्रु झलक रहे थे । राजा हरिनन्दी पुत्रको गले लगाकर उसके मस्तक पर वारंवार चुम्बन - करने लगे । उनके नेत्र उसे देखकर मानो इप्स ही न होते थे । माता ने भी पुत्रकी पीठ पर हाथ फेरकर उसे आशीर्वाद दिया और उसे चुम्बनकर अपना प्रेम व्यक्त किया । इसके बाद प्रीतिमती आदिक पुत्रवधुओंने भी अपने सास- श्वसुरको प्रणाम किया और विमलबोधने उनसे उन
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