Book Title: Neminahacariya Part 2
Author(s): Haribhadrasuri, H C Bhayani, Madhusudan Modi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 211
________________ ६४० नेमिनाहचरिउ [ २८६८ [२८६८] राहु-परिहवु जलहि-विच्छोहु देसंतर-परियडणु कि न पतु चंदिण कु-बुद्धिण । कि न निसियर-सेहरिण कालकूडु कवलियउं ईसिण ॥ सक्कु विडं विउ तावसिहि लहइ दसाणणु मच्चु । हुयइ कुवुद्धिहि कुप्पहुई काई करेइ सु-भिच्चु ॥ [२८६९] __ तुहुं सु खत्तिउ हउं सु गोवालु तुडं वुड्ढउ डिंभु हउं विहिय-समरु तुहं हउँ निवारणु । तुहं मेइणि-वल्लहउ हउं सु नंद-वसुदेव-नंदणु ॥ तुहुं पयडिय-गुरु-कोव-भरु हउं गुरुयणहं नमंतु । इय पेक्खेज्जसु मगह-पहु तुहुँ मइं रणि पहरंतु ॥ [२८७० एम्ब गहिरई थिरई सामरिसहरि-वयणई सुणिरु जरसंधु निवइ पसरंत-मच्छरु । अइ-निसिय-सर-धोरणिहिं दुसह-रोस-कंपंत-कंधरु ॥ ताडइ कण्ह-सरीरु निरु कण्हु वि निय-वाणेहिं । फोडिवि गद्दि स-पक्खर वि निहणइ रिउ-अंगेहिं ॥ [२८७१] खग्ग-खणखण-राव--सरेण फर-फडफड-सद्रिण वि कुंभि-मुक्क-चिक्कार-घोसिण । रह-घणघण-आरविण तुरय-रयण-परिविहिय-हेसिण ।। वज्जिर-रण-तूर-ज्झुणिण सुहड-सीहनाएण । वहिरिउ नहयलु खुहिउ रिउ पुणु कण्हह घाएण ॥ २८६८.३ क. ख. किन्न; ९. करे. ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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