Book Title: Neminahacariya Part 2
Author(s): Haribhadrasuri, H C Bhayani, Madhusudan Modi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 268
________________ ६९७ ३१४७] नेमिवुत्तंतु [३१४१] कण्ह गरुयर एह कह जइ-वि निसुणेसु तहावि तुहुँ भण्णमाण संपइ समासिण । पारासर-नामु दिउ आसि गामि एगम्मि अह तिण ॥ राउल-वाय-वसेण जणु सयलु वि पीडंतेण । वासारत्ति पहुत्ति निव- चरि खेडावंतेण ॥ [३१४२] एगम्मि दिणे छोडिज्जंतेसु हलाण पंचसु सएसु । पत्तेयं भत्तम्मि य पत्ते मज्झण्ह-समयम्मि ॥ [३१४३] तण्हा-छुहा-परिस्सम-दिणयर-परिताव-विहुरिय-तणं । हलिय-सयाण पंचण्हं पुरो जंपियमरेरे ॥ [३१४४] मह छेत्तं सिंचंतं एगेगं दाउ भोयणं कुणह । अह तेहि मुक्क-दीहर-सासेहिं गलिय-छाएहिं ॥ [३१४५] कहकहमवि एक्केक्का पयच्छिया तेहिं हलिय-वसहेहिं । कय-गरुय-असुह-लंभा वंभा विप्पस्स छेत्तम्मि । [३१४६] तप्पच्चयं च बहुं विप्पेणं अंतराइयं गरुयं । भमिउं भवे चिरं सो एसो तुह नंदणो जाओ ॥ [३१४७] सुणिवि स-चरिउ एहु निय-जाइमणुसरिउण जाय-भव- विरइ चरण-माणिक्कु गिण्हइ । परियडइ य पडि-भवणु भिक्ख-हेउ न-उ लवु वि पाम्बइ। अह नणु खेइज्जइ भमिरु मई सहुं इयरु वि साहु । न-उण दुवेण्हहं एक्कह वि जायइ भिक्खा-लाहु ॥ ३१४४. २. अह नेहि corrected as तत्तो in क. ३१४५. १. क. पयाच्छिया. ३१४६. २. क. नंदण, ख. नदणो. Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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