Book Title: Neminahacariya Part 2
Author(s): Haribhadrasuri, H C Bhayani, Madhusudan Modi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 277
________________ ७०६ नेमिनाहचरिउ [३१८५] अह समं पि-हु किलकिलंतेहिं पसरंत-तालारविहिं मइर-मइण वियलंत-चित्तिहिं । अक्खुडिरिहिं पडिरिहिं वि सेल-सयल-भज्जत-गत्तिहिं ॥ मुट्ठि-लेठुक-पयंपिइहिं कह-कहमवि अवरद्ध । जह वारवइहि दाह-कइ कुणइ नियाणय-बंधु ॥ [३१८६] एहु वइयरु मुणिवि महुमहणु पलभदिण परियरिउ गहिय-सार-परिवारु तक्खणि । चडिऊण तुरंगमिहि तम्मि चेव संपत्तु काणणि ॥ अणुणय-चयणिहिं वहु-विहिहि उवसामेउ पय? । दीवायण-तावस-अहमु भणइ य रोस-वसटु ॥ [३१८७] हंत पाविहिं तुज्झ तणएहिं मिलिऊण सव्वेहिं हउं नियय-झाण-अज्झयण-लोणउ । निक्कारणि ताडियउ लट्ठि-मुटि पाएहिं दीणउ ॥ सु-विसेसिण दुव्वयण-सय- खग्गिण हणियउ तेम्व । तइं मुसलि वि मिल्लेवि पुरि इह डहेसु हउं जेम्व ॥ ततश्च [३१८८] अहह मुर-रिउ करिसि म खेउ इयरस्सु कस्सु वि उवरि विहिहि वसिण कु व कु व न पावइ । भव-विवणि दुहावणइ मण-अगोयर वि विविह-आवइ ॥ निय-सुह-असुहई पुव्व-भव- समुवज्जियई चएवि । को गेण्हइ जसु अवजसु व भद्द अ-भह व देवि ॥ ३१८५ ६. क. ख. लेठुकु. ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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