Book Title: Neminahacariya Part 2
Author(s): Haribhadrasuri, H C Bhayani, Madhusudan Modi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 299
________________ ७२८ एक्कारस- गणहरिहिं समणीणं असम-गुणगुण-सत्तर- सहस-जयछत्तीस सहस वुहिय [३२८४ ] असम-भत्तिण विहिय-पय-सेवु अभिहाणिण महिय-पउ तियसासुर-नर-निवहनव-कंचण-कमलहं उवरि अणुस संत अणुगमिर नेमिनाहचरिउ तह मुणीण अद्वार - सहसिहि । निहिहिं सहस-चालीस - संखिहिं ॥ इग-सावय-लक्खेण । साविय लक्ख - तिगेण ॥ [३२८५] विउत्तिण सुरिण गोमेह Jain Education International 2010_05 विहिय-भत्ति कुसुमंडि - देविहिं । नहयरेहिं पडिवन्न - सेविहिं ॥ विणिवेसंतु पयाई । बहुविह भविय सयाई ॥ [३२८६ ] कमिण पत्तउ धरणि-तिलयम्मि सोरge मंडण हरियंदण - अगुरु- सिरिखंड - नाय - पुन्नाय - मणहरि ॥ पसरिय-धर - संताव- हर वहु-निज्झर झंकारि । अंक- पुलय-वेरुलिय-पह - अहरिय-तम- पभारि ॥ वउल-तिलय सहयार - सुंदरि । अह आसण - कंप-वससविहिम्मि पहुत्त सुरअह जह-अहिगारिण कयइ frees सीहासणि खविय - [३२८७] पतु रेवय- सिहरि - सिहरम्मि मुणिय- चरम - कल्लाण सामिहि । असुर - नाह सिव- अग्गगामिहि ॥ समवरसणि जय नाहु | अंतर- रिउ - वावाहु ॥ ३२८४. ४. समणीण वि ८. क. इ added marginally after छत्तीस; ख. छत्तीस सहसजुय; ख. लक्ख तिग सावियणिणदक्खेण ३२४७ ९. After this line क. reads ओं, [ ३२८४ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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