Book Title: Neminahacariya Part 2
Author(s): Haribhadrasuri, H C Bhayani, Madhusudan Modi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 298
________________ ३२८३ ] नेमबिहारु [३२८० ] सव्वि सेवहिं गुरुहुं पय- पउम सवि कम्म क्खय-निरय सवि पालहिं जिण-वयणु अरम्मि उ अवसर नियमु भुंजिता जइ भिक्ख मह सव्वि सिद्धि-संगम - सुहासय । सव्वि तुट्ट-संसार वासय ॥ भीमु मणिण गिण्हेई । कु-वि कुंत ग्गिण देइ ॥ [३२८१] तयणु निरसणु ठियउ छम्मास कंपाविय- धरणियल क- पारण वहु-तविहि अह अन्नय सिरि-नेमि - जिण चलणहं वंदण - रेसि | सुह- परिणाम - विसेसि ॥ वहंत कुंदिदु-सम - Jain Education International 2010_05 अह कहें चि पुन्नइ अभिग्गहि | परिसुसंति सयलम्मि विग्गहि || [३२८२] चलिय पंच वि ते महा-सत्त भुवण-बंधु साहिय- विहाणिण । विहरंत अणुक्कमिण भयवंतु वि भविय-मण- कमल-तरणि तित्थयर - कप्पिण || मझ देसि नाणा - विहिहि ठाणिहि विहरेऊण । रायपुराइ - महापुरिहि उत्तरहं वि गंतूण ॥ [३२८३] अह चडेविणु गिरिहिं हिरिमंति विरेवणुवहु - विि अह दाहिण - दिसिहिं गय- पव्वयस्सु तसु उत्तरेविणु ॥ इय आरियहि अणारियहि वहु-ठाणिहिं विहरेउ । अह केवल - नाणेण निय- आउहु अंतु मुणेउ || मिच्छ - पुरिहि वोवि भवि यणु । ३२८०. ४. क. जिण.. ३२८१. १. क. तियस-छम्मासः ३. क. पुन्न. For Private & Personal Use Only ७२७ www.jainelibrary.org

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