Book Title: Neminahacariya Part 2
Author(s): Haribhadrasuri, H C Bhayani, Madhusudan Modi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 296
________________ ७२५ ३२७५] पलभहवुत्तंतु [३२७०] पाणि-संठिय-संख-गय-चक्कु पीयंवरु कण्हु कय- उर-पएस-सिरि-वच्छ-भूसणु । रामो उण हल-मुसल- पाणि नील-अंवरु अ-दूसणु । वेउव्विउण विमाण-ठिउ गाम-नयर-देसेसु । गयणिण पुरि सुहि-सयण-जुउ भमइ सु तियस-विसेसु ।। [३२७१] भणइ पुणु - इउं कण्हु सिजिऊण संहरहुं असेस भुय कुणहुं पुण-वि इच्छाणुरूविण । वारवइ वि सिट्ठ मई हरिवि मई वि इह नीय गयणिण ॥ ता कत्ता भोत्ता य हउं इयरु सयलु वामोहु । इच्छहं जाइवि सिवि पुण-वि आवडं निम्मल-वोहु ॥ [३२७२] मच्छो कुम्म वराहो नरसीहो वामणो य रामो य । रामो रामो य तहा वुद्धो कक्की वि-हु भवामि ॥ [३२७३] सव्व-गओ हं तस-थावरेसु भूएसु नूण चिट्ठामि भूयाई मम्मयाइं वइरित्तेहिं न भूएहिं ॥ [३२७४] ता परमप्पा अहमेव इत्थ पूएह तो ममं चेव । आराहह निरचं पि-हु जइ इच्छह अप्पणो रिद्धि ॥ । [३२७५] इय परूविवि सयल-वसुहाए काराविवि देव-उल- वावि-कूव-पव पमुह-ठाणिसु । ठावाविवि तेसु हरि पायडेउ तसु पूय-पगरिसु ॥ पूय कुणंतहं माणवहं वियरिवि विविह-समिद्धि । तेण पयट्टिय अजु-वि इह दीसइ जणहं कु-बुद्धि । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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