Book Title: Neminahacariya Part 2
Author(s): Haribhadrasuri, H C Bhayani, Madhusudan Modi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 306
________________ [प्रशस्तिः । [३३११] पहु-अणंतरु हुयउ जिणु पासु पासाउ वि वीर-जिणु इंदभूइ अह तह सुहम्मु वि । ता जंवु-सामि अह पहवु तयणु गुरु-गणु अ-संखु वि ।। अह कोडिय-गणि चंद-कुलि विउल-वइर-साहाए । अइगच्छंतिहि अणुकमिण वहु-गणहर-मालाए ॥ [३३१२] हुयउ ससहर-हार-नीहारकुंदुज्जल-जस-पसर- भरिय-भुवण-वडगच्छ-मंडणु। जिणचंद-मुर्णिदु धर- वलय-भविय-जण-हियय-रंजणु ॥ तमु पुणु पट्टह जस-कलसु आसि जगुत्तिमु सीसु । अवितहत्थ-नामिण पयडु सिरि-सिरिचंद-मुणीसु॥ _[३३१३] एहु पयड वि हुयउ हरिभदसूरि त्ति विणेय-लवु असम-विविह-गुण-रयण-भूरिहि । सारय-ससि-विमल-जस- भरिय-धरह सिरिचंद-भूरिहि ॥ तह सिरिमाल-पुरुब्भविउ पोरुयाड-अभिहाणु । चिटइ वसु असंख-गुण- नर-माणिक्क-निहाणु ॥ [३२१४] जो य संठिउ नयरि सिरिमालि लच्छीए पयडीहविवि विहिय-असम-सव्वंग-रिदिउ। गंभूय-पूरीए गउ वढमाण-मुहि-सयण-वुद्धिउ । हत्थि-तुरंगम-सटि-सय- तय-किरियाणय-धामु। तम्मि वंसि सु-पसिद्ध हुय ठक्कुरु निन्नय-नामु ॥ ३३१२. ३. क. भुषण. ३३१५. The last line of the stanza in क. is lost due to the damaged corner of क. ६. क. ख. सहा ७. भय Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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