Book Title: Neminahacariya Part 2
Author(s): Haribhadrasuri, H C Bhayani, Madhusudan Modi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 307
________________ ७३६ नेमिनाहचरिउ [ ३३१५ [३३१५] अवर-अवसरि जणय-बुद्धीए वणराय-नराहिविण नीउ संतु अणहिल्लवाडइ । विज्जाहर-गच्छि कय- उसह-भवण-झय-छलि भम्वाडइ ॥ नियय-कित्ति-कामिणि दिसिहिं नीसेसिहि वि ललंत । जइ अज्ज-वि कोउगु कसु-वि ता सु नियउ पसरंत ॥ [३३१६] तयणु सारय-समय-रयणियरकिरणावलि-निम्मलिहिं गुणिहि पत्त असरिस-मडप्फरु । हुउ निन्नय-अंगरुहु लहर-नामु दंडवइ मणहरु ॥ तेण य विंझ-गिरिहिं गइण गहिय अणेग करिंद । निज्जिय पुणु करि-हरण-मण वहु-विह समरि नरिंद ॥ [३३१७] धणुहि विहियइ जीए अवयारि लीलाइ वि रिउ जिणिय अजु वि देवि सा विंझवासिणि । तिण कारिय संडथल- गामि अन्थि दुरिओह-नासिणि ॥ किंतु लहर-नामिण स तहिं धणुहावि त्ति पसिद्ध । हुय सयल-धरणियल-कय- पूय-विसेस-ममिद्ध ॥ [३३१८] तत्थ पत्तिण हत्थि-दंसणिण वणराय-नराहिविण सु-प्पसन्न-चित्तेण लहरह । तं चेव य संडथल- गामु दिण्णु कज्जे थईयह ॥ तसु पुणु लच्छि-सरस्सइहि देविहि विहिय-पसाउ । महियल-विलसिर-जस-पसरु असम-गुणिहि विक्खाउ । ३३ १५. ७ क. नीसेसिहि. ३३१७. १. वियहियइ; ३. क, विज्झवासिणि. ४. क. संडवल. Lines 6 to 9 of 3317 and lines 1 to 5 of 3318 are added marginally in क. ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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