Book Title: Neminahacariya Part 2
Author(s): Haribhadrasuri, H C Bhayani, Madhusudan Modi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 286
________________ ३२२९ ] कण्हमरणु [३२२६] अहव अज्ज-वि होउ मह समुहु अप्पाणु पयासिउण जेण दप्पु हउ दलउं तस्सु वि । अह - नूण न हरिणु इहु किंतु सदु माणुसह कस्मु-वि ॥ इय चिंतंतु जरा-कुमरु हरि-सविहिहिं संपत्तु । ता जंपिउ कण्हेण - इहु वंधव को वुत्तंतु ॥ [३२२७] तयणु दीहरु नीससेऊण जर-कुमरु समुल्लवइ भाय तम्मि समयम्मि नेमिण । जं कहिउ दुवालसहं समहं अंति तुहं जर-कुमारिण ॥ हम्मसि इय निसुणेवि हउं वंधव-रक्ख-निमित्तु । वसिम-देसु सयलु वि चइवि इह थक्कउ आगंतु ॥ [३२२८] किंतु मह समु हुयउ अ-कयत्यु तहं तं-पि-हु भाय मह कहसु केम्व हउँ पावु सुज्झिसु । तह पच्छिम-वइयरु वि को-वि उचिय-वयणेहिं साहसु ॥ अह निय-वइयरु साहिउण भणइ कण्हु - वेगेण । गच्छसु पंडव-सविहि तुहं सह कुत्थुम-रयणेण ॥ [३२२९] तयणु कुत्थुभ-रयणु वियरेवि साहेवि स-वइयरु वि कहिज मज्झ मिच्छामि-दुक्कडु । जइ पुणु तई पेक्खिसइ एण्हि मुसलि ता जेम्व मक्कडु ॥ तिम्व आरुहिउण सिर-उवरि तई मारिसइ अवस्सु । जं मह विप्पिय-गारयह एहु घणाइ न कस्सु ॥ ३२२६. ५. क. म्माणुसह. ३२२७. ७. क. रक्खहि मित्त. ३२२८. १. क. अकयत्थ. ६. क. साहियउण. ७. क. कण्ह. Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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