Book Title: Neminahacariya Part 2
Author(s): Haribhadrasuri, H C Bhayani, Madhusudan Modi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 290
________________ ३२४९ ] वलएवसोगु ७१९ [३२४६] भाय करिहि-न संझ-कायव्वु किं कोविण मझुवरि करिसु तुज्झ विप्पिउ न कहमवि । मई सविह-ट्ठियइ तुह समुहु विसमु जोयइ न अन्नु वि ॥ मुत्तउ सीहु कु जग्गवइ करिहि कु गेण्हइ सप्पु । तुह अवराहु करेवि कु व भाय विगोयइ अप्पु ॥ [३२४७] घूय विरसहिं फुरहिं सिव-सद्द वेयाल समुल्लसहिं ललहिं भूय नच्चंति साइणि । कीलंति पिसाय-सय पिउ-वणेसु पसरंति डाइणि ॥ ता सोवद्दवु ठाणु इहु. वंधव परिहरिऊण । चल्लि-न गम्मइ बसिमि पुरि हरि विलंबु चइउण ॥ [३२४८] इय पयंपिरु पडिरु धरणीए उटुंतउ पुणु खणिण खणिण गीउ गायतु मणहरु । नच्चंतउ पुणु खणिण खणिण मुक्क-पुक्कारु दुहयरु ॥ खंधि करेविणु हरि-मयगु महिहिं भमिउमारद्ध। अह सिद्धत्थिण पत्त-मुर- भविण सु तह उवलद्ध ॥ [३२४९] तयणु घिसि घिसि कम्म-परिणामु सो एण्हि नासिवि गयउ कत्थ हरिहि तारिसु मडप्फरु । वलए० वि हुयउ किह गलिय-बुद्धि-माहप्प-वित्थरु ॥ खंधि करेविण मयउ किह हिंडइ देसि देसु । अहव सु-पुरिसु वि किं कुणइ विवरिय-कम्म-विसेसु ॥ ३२४७. ६. क. ठाण. ३२४८. ७. क. महिंहिं; ख. महिं. ३२४९. ६. क. ख. गयउ for मयउ, Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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