Book Title: Neminahacariya Part 2
Author(s): Haribhadrasuri, H C Bhayani, Madhusudan Modi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 282
________________ ३२०९] कण्हवलपववणगमणु ७११ [३२०५] __ इय कहंचि-वि जणणि-जणयाई उवरोहिण हरि-मुसलि नीहरेउ जिन्नम्मि काणणि । परिसंठिय खणु नियहिं वाहु-जलिण धोइयइ आणणि ॥ डज्झिर नयरि रुयंत सिसु कंदिर पुर-नर-नारि । जंपिर पगइ वि - रक्खि हरि रक्खि तुहूं वि हलहारि ॥ [३२०६] एम्व वहु-विह नियय-नयरीए अ-समंजस नियवि हरि मुक्क-धाहु अइ-दीणु पलवइ । हा देव मह वाहु-वलु कत्थ कत्थ सा सुकय-संपइ ॥ कहिं ति महारा जक्ख गय कहिं त महारउं चक्कु । काल-कंस-जरसंध-हरु कहिं त मज्झ वलु थक्कु ॥ [३२०७] सटि-समहिय-समर-ति-सयस्सु जय-पावणु सुकय-भर गयउ कत्थ सो मज्झ संपइ । इय करुणउं विलविरह हरिहि पुरउ वलभद्द जंपइ ॥ नणु वंधव किह तुहुं वि इम्ब पागउ व्व विलवेसि । तमु सिरि-नेमिहि वयणु इहु कि न तुहुं हरि सुमरेसि ॥ [३२०८] जं उस्सया सिरीए पडणंता चेव इत्थ सव्वे-वि । रण-तण-तरुवराणं जा पज्जंतम्मि सक्काणं ॥ [३२०९] पुनोदयम्मि उदओ रिद्धीणं तम्मि झिज्जमाणम्मि । झिज्जइ इयरो वि कमेण दो-वि भंसति पज्जंते ॥ ३२०६. ८. क. ख. जरसंधु. ३२०७. ८. तसु is added marginally in क., ख. omits it. ९. तुहं नरवर सुमरेसि in क. is marginally corrected as तुहुं हरि सुमरेसि. ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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